Sunday, December 27, 2009

दायरा इन दिनों दुनिया का कितना तंग लगता है,
ज़रा सी उंगलियाँ मोड़ो तो मुट्ठी में सिमटता है.

फ़क़त ये माँ का आँचल ही उसे महफूज़ रखता है,
बच्चा माँ से पिटता है तो माँ से ही लिपटता है.

बड़े मकान के छोटे से इक कमरे में बूढ़ा बाप,
किसी मुरझाये हुए फूल कि तरह बिखरता है.

गरीब बाप के जज़्बात समझता नहीं कोई,
बेटियाँ दान करता है और बरसों सिसकता है.

मेरे शाने(कंधे) से भी उंचा नज़र आने लगा बेटा,
आजकल बात छुपाता है कहने में हिचकता है.

न जाने कितनी लम्बी जंग है दोनों में अब देखो,
जब चाँद छुप जाता है तो सूरज निकलता है.

Wednesday, December 2, 2009

मौसम सुहाना हो गया..



उसको देखा तो दीवाना हो गया,
चाँद भी कुछ शायराना हो गया.

तुमने झटका ज़ुल्फ़ से पानी उधर,
और इधर मौसम सुहाना हो गया.

भूल बैठे थे जिन्हें मुद्दत से हम,
फिर उन्ही गलियों में जाना हो गया.

खून-ऐ-दिल का और वो करते भी क्या,
हाथ पर मेहँदी लगाना हो गया.

हम अभी तक भी नशे में चूर हैं,
मय पिए हम को ज़माना हो गया.

उसको सीने से मेरे लगना ही था,
बिजलियाँ चमकीं, बहाना हो गया.

घर बनाया तुमने अल्लाह के लिए,
पंछियों का आशियाना हो गया.

Monday, November 16, 2009

चाँद की सिलवटें नज़र आईं....



जब कहीं खल्वतें नज़र आईं,
इश्क की हरक़तें नज़र आईं,

आज फिर उनको प्यार करने चले,
आज फिर कुछ हदें नज़र आईं,

तेरे चेहरे को जो छू कर देखा,
चाँद की सिलवटें नज़र आईं.

सर पे माँ बाप का साया है अभी,
इसलिए बरकतें नज़र आईं.

जिंदगी चुक गयी कुछ भी ना बचा,
तब कहीं फुरसतें नज़र आईं.

चोरी से प्यार हम भी करें..



सोचते यूँ हैं की दो चार बार हम भी करें,
कोई मिल जाए तो चोरी से प्यार हम भी करें.

जिंदगी यूँ ही गुज़र जायेगी डरते डरते,
गुनाह कोई तो इक बार यार हम भी करें.

उचक के चूम लो तुम भी हमारे होठों को,
और अपनी बाहों को गले का हार हम भी करें.

सबूत बेवफाई के ही नज़र आते हैं,
दिल तो कहता है उसपे ऐतबार हम भी करें.
...........
किसी गरीब की झोली में डाल दें बटुआ,
खिजां के मौसमों में इक बहार हम भी करें

Wednesday, November 4, 2009

तेरे बदन की ये खुशबु..



बस इस बहाने से मिलने मिलाने आती है,
वो सूखा तौलिया छत पे सुखाने आती है.

मैं उस हवा का इंतज़ार किया करता हूँ,
जो तेरी खिड़की का पर्दा हटाने आती है.

चाँद कहता है ग़ज़ल तेरे हुस्न पे हर शब्,
चाँदनी गीत तेरे गुनगुनाने आती है.

तेरे बदन की हरारत ही सुलाती है मुझे,
तेरे बदन की ये खुशबु जगाने आती है.

चिराग हो गए गुल घर के खुद-ब-खुद सारे,
तू जुगनुओं की तरह जगमगाने आती है.

Tuesday, October 27, 2009

पानी में रहेगा शायद...

फूल गुलशन में कोई फिर से खिलेगा शायद,
आज लगता है वो थोडा सा हंसेगा शायद..

ना जाने कब मेरी आँखों में आके बैठ गया,
अजीब घर चुना, पानी में रहेगा शायद.

लापता है बड़े दिनों से हमारा दिल भी,
पडा हुआ उसी गली में मिलेगा शायद.

टूट कर बाल पलक का चला गया अन्दर,
आज फिर जोर से वो आँख मलेगा शायद.

बोझ यादों का तो पहले भी बहुत है दिल पर,
अब तेरा ग़म भी मेरे साथ चलेगा शायद.

वो दोस्त बन के आज मुझसे मिलने आया है,
आज फिर से कोई एहसान करेगा शायद.

Tuesday, October 20, 2009

कुछ फटे नोट चल गए होंगे..



ये ना समझो पिघल गए होंगे,
लोग अन्दर से जल गए होंगे.

प्यार से तुमने जो देखा हमको,
सारे आशिक मचल गए होंगे.

गफलत-ऐ-हुस्न से बजारों में,
कुछ फटे नोट चल गए होंगे.

लोग शबनम जिसे समझते हैं,
आँख से मोती ढल गए होंगे.

अब वो पहचानते नहीं हमको,
शायद चेहरे बदल गए होंगे.

आज सूरज में वो तपिश भी नहीं,
धूप में वो निकल गए होंगे.

Monday, October 12, 2009

करवा चौथ



तेरी सलामती की आस हम भी रखेंगे,
तेरे लिए कोई उपवास हम भी रखेंगे.

तू भूखी प्यासी दुआ मेरे लिए मांगेगी,
तेरे हिस्से की थोडी प्यास हम भी रखेंगे.

चलो की आज चाँद से मुकाबला कर लें,
चाँदनी कुछ तो आस पास हम भी रखेंगे.

ता उम्र तू भी मेरा प्यार संभाले रखना,
उम्र भर प्यार का अहसास हम भी रखेंगे.

जिंदगी अपने फलसफों में उलझी रहती है,
इस बरस कोई मधुमास हम भी रखेंगे.

Thursday, October 8, 2009

बहुत दिनों के बाद...



आज फुर्सत हमें मिली बहुत दिनों के बाद,
उसकी कुर्बत हमें मिली बहुत दिनों के बाद,

मुझे पहलू में बिठा लो कि छुपा लो खुद में,
ये हरारत हमें मिली बहुत दिनों के बाद.

घुंघरू पायल के बजाऊं मैं अपने हाथों से,
ये इजाजत हमें मिली बहुत दिनों दे बाद.

चाँद देखा नहीं मुद्दत से आइना बोला,
ये शिकायत हमें मिली बहुत दिनों के बाद.

आप सोते रहें मैं जागता रहूँ शब् भर,
ये इनायत हमें मिली बहुत दिनों के बाद.

खुद ही लिख लिख के मिटाते रहे हैं बरसों से,
थोडी शोहरत हमें मिली बहुत दिनों के बाद.

Friday, September 11, 2009

नफे का हिसाब हो गई...



प्यार में ऐसे खिली गुलाब हो गयी,
परछाई उसकी एक माहताब हो गयी.

होंठ पे सजाया उसको गीत बना के,
इस तरह पढ़ा कि वो किताब हो गयी.

उसको पा के और मैंने क्या नहीं पाया,
लो वो सिर्फ नफे का हिसाब हो गयी.

पहेलियों कि तरह उसको बूझता हूँ मैं,
बर्फ कभी बिजली कभी आब हो गयी.

होश उसने छीन लिए लबों को छूकर,
जाम में डाली हुई शराब हो गयी.

ढलती हुई उम्र मेरी उसने थाम ली,
बालों में लगाया हुआ खिजाब हो गयी.

आवाज तेरी सुनके घर को लौटता हूँ मैं,
क्या करूँ आदत मेरी खराब हो गयी.

Thursday, September 3, 2009

इस बरस नहीं हुई...



ईद चाँद के लिए बेबस नहीं हुई,
जब से तुम मिली हो अमावस नहीं हुई.

चादर की सिलवटें भी यूँ चुभती रही हमें,
वो अगर हमारी हमनफस नहीं हुई.

चाँद को हथेलियों में भर के पी लिया,
कम किसी तरह भी ये हवस* नहीं हुई. *प्यास

प्यार की बरसात है जी भर के भीग लो,
फिर ना ये कहना की इस बरस नहीं हुई.

फ़कीर बन के मांग लिया तुमको खुदा से,
दुआ कोई फ़कीर की वापस नहीं हुई.

Tuesday, September 1, 2009

घिरा रहता हूँ...

अजब से मकडी के जालों में घिरा रहता हूँ,
मैं सुबहो-शाम बवालों में घिरा रहता हूँ.

कभी सुलझाता हूँ इसको कभी हल करता हूँ,
मैं जिंदगी के सवालों में घिरा रहता हूँ.

और कुछ सोचने का वक़्त है ना ताकत है,
पेट भरने के निवालों में घिरा रहता हूँ.

पाँव भीगे हुए रहते हैं हमेशा मेरे,
फूटकर बह रहे छालों में घिरा रहता हूँ.

तेरे सिवाय मुझे कुछ नज़र नहीं आता,
मैं अक्सर तेरे ख्यालों में घिरा रहता हूँ.

सुकून मिलता है बस महफिले सुखन में मुझे,
सो शायरी के रिसालों में घिरा रहता हूँ.

तो आ जाऊँगा...



मुझको सीने से लगाओगे तो आ जाऊंगा,
तुम अगर दिल से बुलाओगे तो आ जाऊँगा.

तेरे आँचल के सितारों से शिकायत है मुझे,
तुम वहाँ मुझको सजाओगे तो आ जाऊँगा.

हर तरफ रात की खामोशी है, सन्नाटा है,
घुंघरू पायल के बजाओगे तो आ जाऊँगा.

बिंदिया माथे की ना बनाओ कोई बात नहीं,
तिल जो काँधे का बनाओगे तो आ जाऊँगा.

गीत लिख लिख के जमा कर लिए कई सारे,
तुम अगर गा के सुनाओगे तो आ जाऊँगा.

मैं तो जुगनू हूँ अंधेरों में नज़र आता हूँ,
बत्तियां घर की बुझाओगे तो आ जाऊँगा.

दूरियां अब सहन होती नहीं मुझसे दिलबर,
मुझमे पूरा जो समाओगे तो आ जाऊँगा.

बस रिश्तों को ढोते हैं...

प्यार का बीज जाने कौनसी मिट्टी में बोते हैं,
साथ रह कर भी कई लोग बस रिश्तों को ढोते हैं.

कोई कोशिश नहीं होती दूरियों को मिटाने की,
किसी उलझे हुए धागे में बस मोती पिरोते हैं.

इंसानी मरासिम में वो गरमी कहाँ रही,
रिश्ते भी महज़ कागजों में दर्ज होते हैं.

बेवफाई फिर उन्हें इतना सताती है,
दामन के दाग उम्र भर अश्कों से धोते हैं.

मुकरर्र है वक़्त हर एक हरकत का जहाँ में,
रात भर जगते हैं जो लोग दिन में सोते हैं.

मय-परस्ती इक बला है जानते हैं सब,
शिद्दत से पैमाने में सब खुद को डुबोते हैं.

Thursday, August 20, 2009

मैं सफर कर लूँगा...



तेरी आँख के पानी को ही घर कर लूँगा,
मैं हिना बनके हथेली में बसर कर लूँगा.

तुम अगर साथ निभाने का मुझसे वादा करो,
चाहे जितना भी हो लम्बा मैं सफ़र कर लूँगा.

यूँ मैं सो जाऊंगा सर रख के गोद में तेरी,
तेरी जुल्फ के साए को शज़र कर लूँगा.

मांग लूँगा खुदा से तुझे सब कुछ खोकर,
मैं दुआओं में अपनी इतना असर कर लूँगा.

आओ थोडा सा प्यार कर लें उसके बाद सनम,
तुम उधर कर लेना करवट मैं इधर कर लूँगा.

तेरी तस्वीर को तकिये पे सजा कर रख लूँ,
फिर तेरी याद के साए में सहर कर लूँगा.

खर्च करने के लिए हूँ..


मैं बस तुम्हारे ख्वाब में बसने के लिए हूँ,
हकीक़त में मिल ना पाउँगा सपने के लिए हूँ.

सौ बार बिगाडो मुझे बनने के लिए हूँ,
रूठने को तुम हो मैं मनने के लिए हूँ.

खुशबु भी हसीं है मेरी रंगत भी हसीं है,
मेहँदी हूँ, तेरे हाथ पे रचने के लिए हूँ.

पन्ने पलटने से तो कोई फायदा नहीं,
दिल की किताब हूँ, मैं पढने के लिए हूँ.

ये ही नसीब है मेरा, ये ही शगल भी है,
सहरा की तेज़ धूप में तपने के लिए हूँ.

क्यूँ रख रहे हो मुझे तिजोरी में छुपा के,
खर्च कीजिये, खर्च करने के लिए हूँ.

हार समझ कर मुझे गर्दन में ना डालो,
रुद्राक्ष की माला हूँ मैं जपने के लिए हूँ.

Sunday, August 9, 2009

बारिश...(एक नज़्म)

बादल भी थे हवा भी, बिजली भी थी घटा भी,
.
काली घटा से आसमान काला हो चला था,
दिन में भी रात जैसा अँधियारा हो चला था,
सड़क पे बरसात की बूंदें मचल रहीं थीं,
बच्चों की टोलियाँ भी पानी में चल रहीं थीं,
पीने के इरादे से कुछ मन बहक रहे थे,
पेड़ों पे नई धुन में पंछी चहक रहे थे,
कोयल भी कहीं छुप कर कोई गीत गा रही थी,
कहीं दूर पपीहे की आवाज आ रही थी,
जश्न का आलम था रंगीन फिजायें थीं,
आसमां पे छाई हुई काली घटायें थीं,
मिटटी की सौंधी सौंधी खुश्बू महक रही थी,
कांच की मानिंद ही सड़क चमक रही थी,
उस सड़क के किनारे फुटपाथ सा बना था,
पानी भरा हुआ था और मिटटी से सना था,
.
उस ओर अचानक जो नज़र गई हमारी,
सिकुड़ा हुआ नंगे बदन बैठा था इक भिखारी,
बेजान बुत की तरह वो बैठा था ज़मीं पे,
चिंता की लकीरें थीं भीगी हुई जबीं पे,
पानी में भीग भीग कर चमडी पिघल रही थी,
उसकी जटाओं से भी गंगा निकल रही थी,
चेहरा बुझा बुझा था आँखें थीं खोई खोई,
लगता था जैसे आँख ये बरसों से नहीं सोई,
मैंने भी ज़रा रुक कर कुछ तरस उस पे खाया,
हाथ जेब में गया और कलदार ढूंड लाया,
कलदार एक लेकर मैंने उस तरफ बढाया,
उसने भी झोली खोली फिर हाथ भी बढाया,
कलदार उसको दे कर मैं आगे बढ़ गया था,
बरसात पे श्रृंगार का इक गीत गढ़ गया था,
बरसात की रंगीनियों में फिर मैं खो गया था,
दो एक जाम पी कर बिस्तर पे सो गया था,
.
.
.
सुबह फिर अखबार था खबरों का सिलसिला था,
सड़क के किनारे एक भिखारी मरा मिला था.......
.
कोई समझा है ना समझेगा ये कुदरत क्या है,
मुझे बताओ ऐसी "बारिश" की ज़रुरत क्या है.

जवां नीदों में...



जवां नींदों में हसीं ख्वाब का बाज़ार लगता है,
यहाँ हर शख्स फकत एक खरीदार लगता है.

इसे दीवानगी समझो ये सिर्फ प्यार नहीं है,
मेरी तबियत उदास हो तो वो बीमार लगता है.

अगर दरवाजे पे हँसता हुआ चेहरा नहीं दिखता,
मैं सच कहूँ घर लौटना बेकार लगता है.

तेरी आँखों के इशारे मुझे समझ नहीं आते,
कभी इंकार लगता है कभी इकरार लगता है.

जब भी वो मेरे जिस्म को छू कर गुजरती है,
हरारत सी रहती है मुझे बुखार लगता है.

वादा किया था उसने की सन्डे को मिलेंगे,
तब से मुझे हर रोज़ रविवार लगता है.

कोई भी रात अँधेरी नहीं होती मेरे घर की,
अमावस में भी मेरा चाँद चमकदार लगता है.

प्यार करके थक गए...



मीठे ख्वाबों में वो गुम से हो गए हैं,
प्यार करके थक गए तो सो गए हैं.

बीच में दीवार तकिये की बना ली,
आज लगता है खफा वो हो गए हैं.

जैसे अंधियारे में गुम हो जाये कोई,
हम तेरे होठों के तिल में खो गए हैं.

बूँद बारिश की टपकती है लटों से,
आज बादल चाँद को भिगो गए हैं.

कत्ल करने का हुनर आता है उनको,
खून के सारे निशां वो धो गए हैं.

वो जो आये रौशनी चमकी थी शब् में,
अब अँधेरा है कि शायद वो गए हैं.

ये पसीने की ना बारिश की हैं बूँदें,
हम तेरे कांधे से लग के रो गए हैं.

ग़ज़ल किसे कहते हैं..

हौसलों को देखिये परवाज़ देखिये,
बहर को भूल जाइये अल्फाज़ देखिये.

है जिंदगी भी गीत इसे गुनगुनाइए,
साज़ छोड़ दीजिये आवाज़ देखिये.

ग़म को ख़ुशी समझ के गले से लगा लिया,
ग़म से मुकाबले का ये अंदाज़ देखिये.

तन्हा सफ़र कटेगा जिंदगी का किस तरह,
कोई हमराह ढूँढिये कोई हमराज़ देखिये.

प्यार के लिए कोई मुमताज़ तो मिले,
हम भी बना ही देंगे कोई ताज देखिये.

श्री कृष्ण ने गीता* में यही बात है कही,
अंजाम छोड़ दीजिये आगाज़ देखिये.

ग़ज़ल किसे कहते है अगर जानना चाहो,
दुष्यंत या क़तील औ फ़राज़ देखिये**.

*गीतोपदेश : "कर्म किये जा फल की चिंता मत कर
** ग़ज़ल के बेताज़ बादशाह दुष्यंत कुमार, क़तील शिफाई और अहमद फ़राज़ साहब को समर्पित.

प्यार की खातिर..

हम ज़हर बस तेरी खातिर ही पिया करते हैं,
दर्द का बोझ भी पलकों पे लिया करतें हैं.

न तो दौलत न तो शोहरत की तम्मना है हमें,
हम तो बस प्यार की खातिर ही जिया करतें हैं.

न हमें ज़ख्म की चिंता रही ना काटों की,
हम अपने ज़ख्म भी काँटों से सिया करतें हैं.

जाम पकडा दिया होठों से लगाकर उसने,
बोसे इस तरह लबों पे वो दिया करतें हैं.

यूँ तो उनको भी है कुछ शौक जफा करने का,
हमसे इजहारे वफ़ा ही वो किया करतें हैं.

बारिश

शब्द हंसते हैं बहर गाती है,
जब भी बारिश घुमड़ के आती है.

किस तरह मैं बचाऊँ अब इनको,
हर ग़ज़ल भीग भीग जाती है.

इक बहाना सा मिल गया है उसे,
मुझसे मिलने कहाँ वो आती है.

कैसा दरिया हुआ है बच्चों का,
कश्ती कागज़ की तैर जाती है.

बूँद बारिश की तेरे गालों पे,
क्या कलाबाजियां दिखाती है.

काले बादल के बीच बगुलों की,
एक सफ में बारात जाती है.

होगी बारिश की देखो चिडिया भी,
आज फिर धूल में नहाती है.

बारिशों में ही माँ भी शिवलिंग पर,
बेल की पत्तियां चढाती है.

Wednesday, July 22, 2009

मुझे आराम चाहिए..

सुकून भरे पल का इंतजाम चाहिए,
बहुत थका हुआ हूँ मुझे आराम चाहिए.

कल तक तो जो भी खबर मिली हादसों की थी,
आज कोई खुश दिल पैगाम चाहिए.

हटा लो बोतल हमारे सामने से अब,
बोतल से बहुत पी चुके अब जाम चाहिए.

दीवानी इस कदर वो मेरे प्यार में हुई,
फिर से किसी मीरा को श्याम चाहिए.

कब तक सफ़र करूँगा जिंदगी में मुसलसल,
अब कोई मंजिल कोई मुकाम चाहिए.

दोस्त बेशक हौसला अफजाई करेंगे,
दुश्मनों का भी तो अहतराम चाहिए.

इन हुस्न वालों के दिमाग आसमां पे हैं ,
इन को कोई हमदम नहीं गुलाम चाहिए.

Thursday, July 16, 2009

मेरी पहली ख़ुशी, मेरी पहली लगन.


मेरी पहली ख़ुशी, मेरी पहली लगन.
मैं तो जीता रहा तुझमें हो के मगन.

तेरे चेहरे से मुझको मिले ताजगी,
तेरा श्रृंगार भी है तेरी सादगी,
तुझको देखूं तो मुझको मिले जिंदगी,
तू ही पूजा मेरी तू ही है बंदगी,

मेरे त्यौहार का तू ही पहला शगन
मैं तो जीता रहा तुझ में हो के मगन....


प्रेमिका तू मेरी तू ही अर्धांगिनी,
तू ही साथी मेरा तू ही है संगिनी,
तू ही पूनम के चंदा की है चांदनी,
इतनी पावन के गंगा के जल से बनी,

अंजुरी भर के तेरा करूँ आचमन,
मैं तो जीता रहा तुझमें हो के मगन....


हाँ तुझे जब बनाया था भगवान् ने,
अप्सरा वाली मिटटी ली निर्माण में,
था खुदा ने गढा तुझको रमजान में,
होंठ पे तिल दिया तुझको मुस्कान में,

यूँ हुआ इस धरा पे तेरा अवतरण,
मैं तो जीता रहा तुझमे हो के मगन....

मेरा बेटा...

तेरी मोटर
तो खराब भी पड़ सकती है,
मेरा घोड़ा
तो तीन टांग से भी भागता है,

क्या करोगे
जब बिजली चली जायेगी ?
ये कंप्यूटर तो बंद ही हो जायेगा,

मैं तो अँधेरे में भी
अपना खेल खेल सकता हूँ,
मेरे पास तो पुरानी सांप सीढ़ी है,

क्या कहा...?
तेरे पापा को कार लिए हो गए बरसों,
तो क्या हुआ...
मेरे पापा भी ले आयेंगे शायद....परसों.........

अपने सोये हुए
अरमानों को जिंदा नहीं होने देता,
मेरे बेटा मुझे शर्मिन्दा नहीं होने देता.

एक और ग़ज़ल..

ये गुलिस्तान मेरी पहुँच से बहुत दूर नहीं है,
हाँ मुझे ही फूल चुनने का शऊर नहीं है.

कहीं दौलत का नशा है कहीं जवानी का,
अब ऐसा कौन है जिसपे कोई सुरूर नहीं है,

वो और लोग थे जो वतन पे इतराते थे,
अब तो बच्चों को अपने बाप पे गुरूर नहीं है.

मीठी नींद भी उसे फ़क़त सपनों में आती है,
जो हर शाम को मेहनत से थक के चूर नहीं है.

मेरे हालत किसी को मैं समझाऊं भी कैसे,
मेरी तरह कोई भी तो मजबूर नहीं है.

वो परबत की तरह है उसे झुकना नहीं आता,
तन के ज़रूर खडा है मगरूर नहीं है,

लो आ गयी कश्ती भी तूफां से निकल कर,
हौसला रखो कि मंजिल दूर नहीं है.

इन्सान तो नहीं था वो ?

किसी मासूम की पहचान तो नहीं था वो ?
टूटे दिल का कोई अरमान तो नहीं था वो ?

तुम जला आये उसे, फूंक दिया मुंह ढक के,
देख लेते, कोई इन्सान तो नहीं था वो ?

आइना तोड़ दिया तूने डर के पत्थर से,
तेरा ही अक्स था हैवान तो नहीं था वो.

मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसा बादल,
वजह रही होगी, बेईमान तो नहीं था वो.

कल एक ख़त लिए फिरता था अदू गलियों में,
मेरे ही कत्ल का फरमान तो नहीं था वो ?

Saturday, June 27, 2009

कई किश्तों में मरता है.

सुहानी शाम के मंज़र में जब ये दिल धड़कता है,
मेरे अन्दर कोई शायर कई किश्तों में मरता है।

कोई आएगा शायद आज दरवाजा खुला रखूं,
पुराने नीम की डाली पे इक पंछी चहकता है।

ये सारे शेर सारी शायरी बेकार लगती है,
किसी बच्चे की आंखों से अगर आंसू छलकता है।

करूँ फिर कोई जिद रुठुं मैं रोऊँ और चिल्लाऊं,
बच्चों की जिदों से ही तो माँ का मन बहलता है।

तू ही तुलसी मेरे घर की, है तू ही रात की रानी,
तेरे आँचल की खुशबू से मेरा आँगन महकता है।

कई दिन बाद मिल कर भी उनींदे से ही लगते हो,
कहाँ अब मुझसे मिलने को तुम्हारा दिल मचलता है।

इश्तहार हूँ....

ग़म मुझसे बाँट लो तुम्हारा ग़म गुसार हूँ,
जो उम्र भर ना चुक सके ऐसा उधार हूँ।
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तुम देख भी लो मुझको मगर भूल भी जाओ,
सड़क पे लगा हुआ कोई इश्तहार हूँ।
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नशा अगर करो तो मेरे प्यार प्यार का करो,
तुम ख़ुद को भूल जाओगे ऐसा खुमार हूँ।
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अपनी ही उम्र खर्च कर रहा हूँ मुसलसल,
अपने ही दुश्मनों में आज मैं शुमार हूँ।

Sunday, June 14, 2009

सुहागरात..




नए सिरे से जिंदगी की शुरुवात करें,आज की रात को फिर से सुहाग रात करें।
हटाओ तुम भी ये चिलमन कि चाँद दिखने दो,

हमारा साथ निभाओ कि जवां रात करें।
बढ़ाओ हाथ ज़रा रौशनी को को गुल कर दो,हमारे होंठ तुम्हारे लबों से बात करें
अपने होठों के प्याले से यूँ पिलादो हमें,कोई जवाब दे सकें ना सवालात करें.

Saturday, June 13, 2009

हाशिया नहीं मिलता.

प्यार का इन दिनों कोई वाकया नहीं मिलता,
शेर कहने के लिए काफिया नहीं मिलता।


जिंदगी भर चुकी है नफरतों के रंगों से,
किसी सफे पे कोई हाशिया नहीं मिलता।


जो सिर्फ़ प्यार-ओ-मोहब्बत की इल्तिजा लाये,
आजकल शहर मैं वो डाकिया नहीं मिलता।



इश्क इक लाईलाज मर्ज़ हुआ करता है,
इसका कोई इलाज़ शर्तिया नहीं मिलता।


शेखजी बन गए सब पीने वाले क्या करते,
कभी मैखाना कभी साकिया नहीं मिलता।

Wednesday, June 10, 2009

ग़ज़ल

इन दिनों मुझे जीवन किसी सज़ा सा लगता है,
तेरे बगैर ये बिस्तर बड़ा बड़ा सा लगता है।

एक मदहोशी सी रहती है तेरी कुर्बत में,
तेरे बदन की महक में कोई नशा सा लगता है।

ये तेरी बोलती आँखें ये लरज़ते हुए लब,
तेरा चेहरा मुझे ज़न्नत की अप्सरा सा लगता है।

मैं तेरी याद में रोया नहीं कभी फ़िर भी,
सुबह के वक्त जाने क्यूँ गला भरा सा लगता है।

पन्ने उलटता रहता हूँ यूँ ही किताब के,
जिंदगी का हर सफा पढ़ा सुना सा लगता है।

मसाइल और भी हैं प्यार के सिवाय मगर,
सावन के इस अंधे को सब हरा सा लगता है।

अपनी हर साँस पे अब तेरा नाम लिख दिया मैंने,
मगर तुझे ना जाने क्यूँ ये सब ज़रा सा लगता है।

एक ग़ज़ल

बेताब परिंदों की चहक देख रहा हूँ,
आसमां छूने की कसक देख रहा हूँ।


कहने को अभी तक हैं मेरे पाँव ज़मीं पे,
लेकिन उठा के सर को फलक देख रहा हूँ।


दीवानगी या इश्क का असर कहो इसे,
रंग सूंघता हूँ महक देख रहा हूँ।


वो बुत समझ रहे हैं मुझे उनको क्या पता,
आगाज़ से अंजाम तलक देख रहा हूँ।


कौनसी मंजिल है मेरी रास्ता है क्या,
चौराहे पे खडा हूँ सड़क देख रहा हूँ।

Monday, June 8, 2009

कुछ यूँ ही से खयालात...!!!

कनारा आँख का कुछ नम तो हुआ ही होगा,
वो कहे या न कहे गम तो हुआ ही होगा.
अपनी औलाद की मासूम सी ख्वाहिश के लिए,
गरीब बाप का सर ख़म तो हुआ ही होगा.
ज़र्द सूखे हुए पत्तों से भर गयी है सड़क,
बोझ पेडों का भी कुछ कम तो हुआ ही होगा
**********************************
उनकी जफा पे बददुआ तो हम भी रखते हैं,
कह नहीं पाते जबां तो हम भी रखते हैं.
आप कीजिये सितम हम मुस्कुराते जायेंगे,
ये निराली सी अदा तो हम भी रखते हैं.
देखना सैलाब हम को छू ना पायेगा,
साथ में माँ की दुआ तो हम भी रखते हैं

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हसीं मंज़र नज़र आता है इन पुरवाइयों के बीच,
जवां है रात हम दोनों हैं इन तनहाइयों के बीच,
मैं सोना चाहता हूँ रख के सर को तेरे सीने पे,
किसी मंदिर के गुम्बद सी तेरी ऊँचाइयों के बीच

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पढ़ के किताबें हम ने कभी कुछ नहीं सीखा,
मोहब्बत ने सिखाया हमें जीने का सलीका.
ऐ चाँद तुझे चौदवहें कि रात देख कर,
कहने लगा हूँ मैं भी उसे चाँद जमीं का।

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ये गुलिस्तान मेरी पहुँच से बहुत दूर नहीं है,
ख़ुद मुझे ही फूल चुनने का शऊर नहीं है।
मेरे हालात किसी को समझ आयें भी तो कैसे,
मेरी तरह कोई भी तो मजबूर नहीं है।
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एक इल्तिजा....

साथ में रहो ना मेरे बिन रहा करो,
छोड़ कर मुझे न बहुत दिन रहा करो।


मुझको तुम्हारी याद सताएगी रात दिन,
तुम दूर ना मुझसे कोई पलछिन रहा करो।

करने दो अपने साथ जो दुनिया करे जफा,
तुम मेरी वफ़ा पे तो मुत्मुइन रहा करो।

मैं तुम को एक घर ना दे सका अभी तलक,

मेरे हसीन दिल की मालकिन रहा करो।

Friday, May 8, 2009

मुझे अनजान बन के प्यार करो...

मेरी महबूब मेरी जान बनके प्यार करो,
.................आओ फिर से मुझे अनजान बनके प्यार करो।
एक तू ही मेरी तन्हाई का सहारा है,
एक तू ही तो इस दुनिया में सबसे प्यारा है,
मेरा अहम् मेरा गुमान बनके प्यार करो,
.................आओ फिर से मुझे अनजान बनके प्यार करो...
शाम एक रात में ढल जायेगी हौले हौले,
उम्र मुट्ठी से फिसल जायेगी हौले हौले,
मेरे वजूद की पहचान बनके प्यार करो,
.................आओ फिर से मुझे अनजान बनके प्यार करो...
मैंने जो वक़्त गुजारा है तेरी बाँहों में,
उसकी तस्वीर लिए बैठा हूँ निगाहों में,
मेरी किस्मत पे मेहरबान बनके प्यार करो,
.................आओ फिर से मुझे अनजान बनके प्यार करो...

Thursday, April 23, 2009

ग़ज़ल

मेरे बच्चों को सुकूं दे, मेरी भी रिहाई कर,
ऐ गरीबी अब तो मेरे साथ बेवफाई कर।
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ऐ खुदा इतना करम कर बेटियों के वास्ते,
बदन पे हल्दी लगा दे हाथ को हिनाई कर।
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घर सजाने में लगा है आजकल हर आदमी,
घर को पीछे देख लेना दिल की तो सफाई कर।
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वक़्त है अहसां चूका दुनिया में लाने वालों का,
बाप की बैसाखी बन जा, माँ की भी दवाई कर।
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सिर्फ शायरी से अपना पेट भर सकता नहीं,
बंद कर कागज कलम अब तू भी कुछ कमाई कर।
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इंसानियत के दुश्मनों से तंग है दुनिया "अखिल"
इन को आइना दिखा अब ऐ खुदा सुनवाई कर।

Saturday, March 14, 2009

प्रणय गीत

अपने अंतस की ज्वाला का परिचय तुमसे करवाने को,
मैंने यह प्रणय गीत लिखा हे प्रिय तुम्हे बतलाने को !


इश्वर ने नई कल्पना से इस मुखड़े को आकार दिया,
अधरों पर तिल का अंकन कर इस यौवन का श्रृंगार किया,
मदमाती यौवन गंधों से जीवन बगिया महकाने को,
मैंने यह प्रणय गीत लिखा हे प्रिय तुम्हे बतलाने को....


पाकर तेरा स्पर्श सदा होता तन मन में स्पंदन,
तेरी निश्छल मुस्कानों से मिलता जीवन को उदबोधन,
अपने जीवन की धड़कन का स्पंदन तुझे सुनाने को,
मैंने यह प्रणय गीत लिखा हे प्रिय तुम्हे बतलाने को....


तुम निकट रहो या दूर तुम्हारी उष्मा का आभास रहे,
मैं पियूं कोई भी नीर किंतु अधरों पर तेरी प्यास रहे,
अपने नैनों के दर्पण में श्रृंगार तेरा करवाने को,
मैंने यह प्रणय गीत लिखा हे प्रिय तुम्हे बतलाने को....


अपने बंधन में बाँध तुम्हे मैं तुम से ही छल कर बैठा,
निज स्वार्थ सिद्ध करने के लिए मैं प्रणय निवेदन कर बैठा,
अपने अक्षम अपराधों में निज को दण्डित करवाने को,
मैंने यह प्रणय गीत लिखा हे प्रिय तुम्हे बतलाने को....


जीवित रहने को समझा था मैंने जीवन की परिभाषा,
तुमसे मिलकर जागी मेरे अन्दर जीवन की अभिलाषा,
तुमको ही अपने जीवन का निर्धारित लक्ष्य बनाने को,
मैंने यह प्रणय गीत लिखा हे प्रिय तुम्हे बतलाने को....

Tuesday, March 10, 2009

ग़ज़ल

हंसीं ख्याल कि तरह ज़हन में रहता है,
लहू बन के मेरे तन बदन में बहता है!


कि फूल हूँ मैं तो बगैर खुशबु का,
मेरे लिए वो शूल कि चुभन भी सहता है!
समझाएं कैसे भला घर कि इबारत उसको,
जो खुद अपने ही घर को मकान कहता है!
साहिल के तमाशाई क्या रोकेंगे उसे,
वक़्त का दरिया है अपनी ही धुन में बहता है!
निकाह और बात है निबाह और बात,
ये मैं नहीं सारा जहां कहता है!
पढ़ा उसी ने सलीके से दोस्ती का सबक,
जो दुश्मनों के ग़मों में शरीक रहता है!

Thursday, March 5, 2009

दिल की गहराइयों से.....

हो तुम जब साथ पत्थर क्या मैं परबत चीर के रख दूँ।
जो तुम बोलो तो ये गर्दन किसी शमशीर पे रख दूँ॥
लगता है मुझे डर एक तेरी इस उदासी से,
वरना पाँव की ठोकर पे हर तकदीर को रख दूँ॥
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बना कर ख्वाब जीवन भर मैं आंखों में बसाऊंगा,
चले आओ कि मैं तुम को तिजोरी में छुपाऊंगा॥
सुना जाती नहीं है मरते दम तक भी बुरी आदत,
तुमको भी मैं जीवन की बुरी आदत बनाऊंगा॥
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ये कैसी दौड़ है जिसमे की हर इंसान शामिल है,
किसी मंजिल पे पहुँचो तो नई मंजिल मुकाबिल है॥
ये कैसा सिलसिला है भीड़ में आगे निकलने का,
अपने ही रहे अपने ना बेगाने ही हांसिल हैं॥

Tuesday, February 17, 2009

यादों की धूल

तन्हाई में भी यादों का मेला सा हो गया।
आई जो तेरी याद अकेला सा हो गया॥

यादों की धूल छा गई घर में तेरे बगैर,
आँगन में भी चिडियों का बसेरा सा हो गया॥

तू सो गया तो सो गई दुनिया भी तेरे साथ,
खोली जो तूने आँख सवेरा सा हो गया॥

लो प्यार के अन्तिम पड़ाव पर पहुँच गए,
तू हो गई मुझ जैसी मैं तेरा सा हो गया॥

दिल को लगा के तूने ये क्या कर लिया 'अखिल',
जिंदगी भर का ये झमेला सा हो गया॥