मायने सब बदलते जा रहे हैं,
मेरे अशआर धोका खा रहे हैं।
पेट की दौड़ में भगता हूँ दिन भर,
ख्याल बैठ कर सुस्ता रहे हैं।
आईने सब उतार कर रख दो,
हम अपने आप से उकता रहे हैं।
साथ रहने से जो उलझे पड़े हैं,
उन्हीं धागों को हम सुलझा रहे हैं।
चढ़ाई उम्र की पूरी हुई है,
ढलानों पर फिसलते जा रहे हैं।
हमें अम्मी ने बहलाया था जिनसे,
उन्हीं बातों से हम बहला रहे हैं।
सुबह गुज़रा मेरे नज़दीक़ से वो,
अभी तक भी पसीने आ रहे हैं।
मेरे अशआर धोका खा रहे हैं।
पेट की दौड़ में भगता हूँ दिन भर,
ख्याल बैठ कर सुस्ता रहे हैं।
आईने सब उतार कर रख दो,
हम अपने आप से उकता रहे हैं।
साथ रहने से जो उलझे पड़े हैं,
उन्हीं धागों को हम सुलझा रहे हैं।
चढ़ाई उम्र की पूरी हुई है,
ढलानों पर फिसलते जा रहे हैं।
हमें अम्मी ने बहलाया था जिनसे,
उन्हीं बातों से हम बहला रहे हैं।
सुबह गुज़रा मेरे नज़दीक़ से वो,
अभी तक भी पसीने आ रहे हैं।