Saturday, March 14, 2009

प्रणय गीत

अपने अंतस की ज्वाला का परिचय तुमसे करवाने को,
मैंने यह प्रणय गीत लिखा हे प्रिय तुम्हे बतलाने को !


इश्वर ने नई कल्पना से इस मुखड़े को आकार दिया,
अधरों पर तिल का अंकन कर इस यौवन का श्रृंगार किया,
मदमाती यौवन गंधों से जीवन बगिया महकाने को,
मैंने यह प्रणय गीत लिखा हे प्रिय तुम्हे बतलाने को....


पाकर तेरा स्पर्श सदा होता तन मन में स्पंदन,
तेरी निश्छल मुस्कानों से मिलता जीवन को उदबोधन,
अपने जीवन की धड़कन का स्पंदन तुझे सुनाने को,
मैंने यह प्रणय गीत लिखा हे प्रिय तुम्हे बतलाने को....


तुम निकट रहो या दूर तुम्हारी उष्मा का आभास रहे,
मैं पियूं कोई भी नीर किंतु अधरों पर तेरी प्यास रहे,
अपने नैनों के दर्पण में श्रृंगार तेरा करवाने को,
मैंने यह प्रणय गीत लिखा हे प्रिय तुम्हे बतलाने को....


अपने बंधन में बाँध तुम्हे मैं तुम से ही छल कर बैठा,
निज स्वार्थ सिद्ध करने के लिए मैं प्रणय निवेदन कर बैठा,
अपने अक्षम अपराधों में निज को दण्डित करवाने को,
मैंने यह प्रणय गीत लिखा हे प्रिय तुम्हे बतलाने को....


जीवित रहने को समझा था मैंने जीवन की परिभाषा,
तुमसे मिलकर जागी मेरे अन्दर जीवन की अभिलाषा,
तुमको ही अपने जीवन का निर्धारित लक्ष्य बनाने को,
मैंने यह प्रणय गीत लिखा हे प्रिय तुम्हे बतलाने को....

Tuesday, March 10, 2009

ग़ज़ल

हंसीं ख्याल कि तरह ज़हन में रहता है,
लहू बन के मेरे तन बदन में बहता है!


कि फूल हूँ मैं तो बगैर खुशबु का,
मेरे लिए वो शूल कि चुभन भी सहता है!
समझाएं कैसे भला घर कि इबारत उसको,
जो खुद अपने ही घर को मकान कहता है!
साहिल के तमाशाई क्या रोकेंगे उसे,
वक़्त का दरिया है अपनी ही धुन में बहता है!
निकाह और बात है निबाह और बात,
ये मैं नहीं सारा जहां कहता है!
पढ़ा उसी ने सलीके से दोस्ती का सबक,
जो दुश्मनों के ग़मों में शरीक रहता है!

Thursday, March 5, 2009

दिल की गहराइयों से.....

हो तुम जब साथ पत्थर क्या मैं परबत चीर के रख दूँ।
जो तुम बोलो तो ये गर्दन किसी शमशीर पे रख दूँ॥
लगता है मुझे डर एक तेरी इस उदासी से,
वरना पाँव की ठोकर पे हर तकदीर को रख दूँ॥
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बना कर ख्वाब जीवन भर मैं आंखों में बसाऊंगा,
चले आओ कि मैं तुम को तिजोरी में छुपाऊंगा॥
सुना जाती नहीं है मरते दम तक भी बुरी आदत,
तुमको भी मैं जीवन की बुरी आदत बनाऊंगा॥
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ये कैसी दौड़ है जिसमे की हर इंसान शामिल है,
किसी मंजिल पे पहुँचो तो नई मंजिल मुकाबिल है॥
ये कैसा सिलसिला है भीड़ में आगे निकलने का,
अपने ही रहे अपने ना बेगाने ही हांसिल हैं॥