प्यार में ऐसे खिली गुलाब हो गयी,
परछाई उसकी एक माहताब हो गयी.
होंठ पे सजाया उसको गीत बना के,
इस तरह पढ़ा कि वो किताब हो गयी.
उसको पा के और मैंने क्या नहीं पाया,
लो वो सिर्फ नफे का हिसाब हो गयी.
पहेलियों कि तरह उसको बूझता हूँ मैं,
बर्फ कभी बिजली कभी आब हो गयी.
होश उसने छीन लिए लबों को छूकर,
जाम में डाली हुई शराब हो गयी.
ढलती हुई उम्र मेरी उसने थाम ली,
बालों में लगाया हुआ खिजाब हो गयी.
आवाज तेरी सुनके घर को लौटता हूँ मैं,
क्या करूँ आदत मेरी खराब हो गयी.
परछाई उसकी एक माहताब हो गयी.
होंठ पे सजाया उसको गीत बना के,
इस तरह पढ़ा कि वो किताब हो गयी.
उसको पा के और मैंने क्या नहीं पाया,
लो वो सिर्फ नफे का हिसाब हो गयी.
पहेलियों कि तरह उसको बूझता हूँ मैं,
बर्फ कभी बिजली कभी आब हो गयी.
होश उसने छीन लिए लबों को छूकर,
जाम में डाली हुई शराब हो गयी.
ढलती हुई उम्र मेरी उसने थाम ली,
बालों में लगाया हुआ खिजाब हो गयी.
आवाज तेरी सुनके घर को लौटता हूँ मैं,
क्या करूँ आदत मेरी खराब हो गयी.