कहा था ना तुमसे,
बाँहों में भर लो मुझे,
बिना मिले ही चली गईं तुम,
तुम्हारे कहे मुताबिक़,
रोज़ दाना डालता हूँ कबूतरों को,
छत भर गई है सारी,
ज्वार और मक्का के दानों से,
आते तो हैं कबूतर
रोज़ छत पर,
छूते हैं दानों को,
मेरी तरफ देखते हैं,
और उड़ जाते हैं बिना खाए ही,
दानो में तुम्हारी खुशबु जो नहीं मिलती,
कहा था ना तुमसे
बाँहों में भर लो मुझे,
बिना मिले ही चलीं गईं तुम...
बाँहों में भर लो मुझे,
बिना मिले ही चली गईं तुम,
तुम्हारे कहे मुताबिक़,
रोज़ दाना डालता हूँ कबूतरों को,
छत भर गई है सारी,
ज्वार और मक्का के दानों से,
आते तो हैं कबूतर
रोज़ छत पर,
छूते हैं दानों को,
मेरी तरफ देखते हैं,
और उड़ जाते हैं बिना खाए ही,
दानो में तुम्हारी खुशबु जो नहीं मिलती,
कहा था ना तुमसे
बाँहों में भर लो मुझे,
बिना मिले ही चलीं गईं तुम...