Tuesday, November 9, 2010

चलो बारिश में गुसल करते हैं....

आज फिर एक पहल करते हैं,
उसके चेहरे को ग़ज़ल करते हैं.

दिल के रिश्तों को दिल में रहने दो,
ये दमागों में खलल करते हैं.

छोड़ दो सब, मेरा कहना मानो,
बस मुहब्बत पे अमल करते हैं.

दिल ये बच्चा है, इसे खुश कर दें,
चलो बारिश में गुसल करते हैं.

हमने पाया उसे या उसने हमें,
इस पहेली को भी हल करते हैं.

तुम को महलों में नींद आएगी,
हम तो कुटिया को महल करते हैं.

जम के अश्कों की ये बरसात हुई,
चलो खुशियों की फसल करते हैं.