Saturday, September 17, 2011

पंछियों ने इन्हें छुआ भी नहीं....


ज़िक्र होता नहीं जवानों में,
लोग गिनने लगे सयानों में.

होगा अपना भी खरीदार कोई,
सज गए हम भी अब दुकानों में.

वो मोहब्बत नहीं मिलेगी कहीं,
जो मोहब्बत है माँ के तानों में.

एक कमरे का घर तो बेच दिया,
कई कमरे हैं अब मकानों में.

इश्क का कारोबार चल निकला,
प्यार बनता है कारखानों में.

ज़िक्र दुश्मन का कर रहे हो तुम,
नाम मेरा भी है बयानों में.

फिर बहाना करो ना आने का,
इश्क जिंदा है बस बहानों में.

पंछियों ने इन्हें छुआ भी नहीं,
तेरी खुशबु कहाँ थी दानों में.