Saturday, December 31, 2011

नया साल...................

जगेगा रात भर कोई, कोई जी भर के सो लेगा,
वही सूरज उगेगा फिर वही अखबार निकलेगा,
मेरा दावा है बदलेगी नहीं दुनिया ज़रा सी भी,
महज़ तारीख लिखने का ज़रा अंदाज़ बदलेगा.

Saturday, December 10, 2011

दिल भी उसका दुकान लगता है....



राह के दरम्यान लगता है,
वक़्त का इम्तहान लगता है.

ग़म, ख़ुशी, खार, फूल सबकुछ हैं,
दिल भी उसका दुकान लगता है.

हौसला हो बलंदियों पे अगर,
पहुँच में आसमान लगता है.

घर से निकला है सर झुका कर वो,
बेटा उसका जवान लगता है.

बोलता है फ़क़त इशारों से,
पंछी वो भी ज़बान रखता है.

वो मुहब्बत करेगा मुझसे भी,
ये सियासी बयान लगता है.

उसकी नाराजगी में घर मुझको,
एक अधूरा मकान लगता है.

Monday, December 5, 2011

एक नज़्म - कुछ यूँ ही से खयालात...


मैंने कब कोई गीत लिखा, या ग़ज़ल कही है...

कागज़ की थाली में से कुछ
किसकिसाते लफ्ज़ चुने थे,
तुमने वो सब पढ़ डाले तो
गीत हो गया...

मन के अंधे कुंए में झाँका
तुम्हे पुकारा
नाम तुम्हारा गूंजा
तो एक नज़्म ढल गई

रात अँधेरे में जब उठकर
नींद उलझ बैठी पंखे से,
याद तेरी चुपके से आई,
ग़ज़ल कह गई


मैंने कब कोई गीत लिखा, या ग़ज़ल कही है...

Sunday, December 4, 2011


सुनो, इस फूल को खिलना सिखा दो,
एक पल के लिए तुम मुस्कुरा दो.

नयन को नित नया सा जागरण दो,
देह को नेह मुखरित आचरण दो,
अधर पर कंपकपाते शब्द रख कर,
प्रीत को एक झीना आवरण दो.

मुखर हो प्रीत का स्वर, कुछ सुना दो,
एक पल के लिए तुम मुस्कुरा दो....

देह के बंधनों को मत निभाओ,
ह्रदय की धडकनों के पार जाओ,
पथिक हो प्रेम पथ के तुम प्रिये तो,
उदहारण प्रीत का बन कर दिखाओ.

अधर की प्यास से भी दो गुना दो,
एक पल के लिए तुम मुस्कुरा दो.....

नशीले नैन ये उनीदीं पलकें,
नहाई देह, भीगी भीगी अलकें,
नहीं इंसान वो पाषाण होगा,
देख कर भी ना जिसके भाव छलकें.

मुझे झकझोर कर के अब जगा दो,
एक पल के लिए तुम मुस्कुरा दो....

समय के साथ बहना छोड़ दूंगा,
ह्रदय की पीर सहना छोड़ दूंगा,
बनाऊंगा नया आकाश फिर में,
चाँद को चाँद कहना छोड़ दूंगा.

प्रीत का गीत कोई गुनगुना दो,
एक पल के लिए तुम मुस्कुरा दो....