ढका छिपा हुआ सा हूँ, खुला कहाँ हूँ मैं,
अभी तो पाँव उठा है, चला कहाँ हूँ मैं.
वजह सैलाब की और कुछ रही होगी,
अभी ज़रा भी जगह से हिला कहाँ हूँ मैं.
बंद पुड़िया हूँ, खुशबु कहाँ से आएगी,
कपूर बन के थाल में जला कहाँ हूँ मैं.
अभी तो प्यास बुझाने का ज़ौक बाकी है,
समंदर से अभी तक मिला कहा हूँ मैं.
अभी ज़रा भी जगह से हिला कहाँ हूँ मैं.
बंद पुड़िया हूँ, खुशबु कहाँ से आएगी,
कपूर बन के थाल में जला कहाँ हूँ मैं.
अभी तो प्यास बुझाने का ज़ौक बाकी है,
समंदर से अभी तक मिला कहा हूँ मैं.