मुस्करा कर तो वो मिला भी नहीं.
खर्च कर दी महज़ बनाने में,
जिंदगी को कभी जिया भी नहीं.
ऐसे लूटा है मुझको रहज़न ने,
कुछ गया भी नहीं बचा भी नहीं.
हमने वो भी सुना कहा था जो,
और जो आपने कहा भी नहीं.
जाने इस चाँद को हुआ क्या है,
ये घटा भी नहीं बढ़ा भी नहीं.
अब बचा क्या है और होने को,
और ऐसा तो कुछ हुआ भी नहीं.
जाने क्या चीज़ है मुहब्बत भी,
ये ज़हर तो नहीं दवा भी नहीं.