Tuesday, February 12, 2013

प्रेम के प्रतीक दिवस पर विशेष...





न तो मस्जिद न शिवाले से बात करता हूँ,

मैं  मुहब्बत  के  हवाले   से   बात   करता   हूँ।

हर एक लफ्ज़ से कुरेदता हूँ इस दिल को,

हर एक ज़ख्म से, छाले से बात करता हूँ।


Sunday, February 10, 2013

कल को जाने क्या दाम हो जाये....

इससे पहले कि शाम हो जाये,
शाम  का   इंतजाम हो  जाए।

इन सितारों का खैर मक्दम हो,
चाँद का  एहतराम   हो जाये।

मैं समा जाऊं उसकी बाँहों में,
फिर ये किस्सा तमाम हो जाये।

आज बिक जाऊं मैं तो अच्छा है,
कल को जाने क्या दाम हो जाये।

मौत का डर अगर रहे ना कहीं,
ज़िन्दगी बेलगाम हो जाये।

या तो महबूब मेरे हो जाओ,
या मुहब्बत हराम हो जाये।

कोई गुज़रे इधर से भी तो कभी,
रास्ता ये भी आम हो जाये।