हम से कहीं अच्छा कहीं बेहतर बना लिया,
बच्चों ने खेल खेल में ही घर बना लिया.
इक बूँद भी आँखों से छिटक कर नहीं गिरी,
आँखों को जैसे उसने समंदर बना लिया.
कपड़े से पेट बाँध के पत्थर पे सो गया,
औ' आसमां को ओढ़ के चादर बना लिया.
दुनिया की नैमतें उसे बिन मांगे मिल गयीं,
माँ-बाप के कदमों में जो मंदर बना लिया.
इक शेर की कमी थी मुक्कमल ग़ज़ल में बस,
कल रात जग के तीसरे पहर बना लिया.
बच्चों ने खेल खेल में ही घर बना लिया.
इक बूँद भी आँखों से छिटक कर नहीं गिरी,
आँखों को जैसे उसने समंदर बना लिया.
कपड़े से पेट बाँध के पत्थर पे सो गया,
औ' आसमां को ओढ़ के चादर बना लिया.
दुनिया की नैमतें उसे बिन मांगे मिल गयीं,
माँ-बाप के कदमों में जो मंदर बना लिया.
इक शेर की कमी थी मुक्कमल ग़ज़ल में बस,
कल रात जग के तीसरे पहर बना लिया.