Sunday, December 22, 2013

आलमारी के मुड़े-तुड़े काग़ज़ों से निकली एक पुरानी ग़ज़ल

हम से कहीं अच्छा कहीं बेहतर बना लिया,
बच्चों ने खेल खेल में ही घर बना लिया.

इक बूँद भी आँखों से छिटक कर नहीं गिरी,
आँखों को जैसे उसने समंदर बना लिया.

कपड़े से पेट बाँध के पत्थर पे सो गया,
औ' आसमां को ओढ़ के चादर बना लिया.

दुनिया की नैमतें उसे बिन मांगे मिल गयीं,
माँ-बाप के कदमों में जो मंदर बना लिया.

इक शेर की कमी थी मुक्कमल ग़ज़ल में बस,
कल रात जग के तीसरे पहर बना लिया.

Wednesday, December 18, 2013

तुम्हारे जन्म दिन पर…


सिर्फ देना जिसे आता हो उसको मैं भला क्या दूँ।
तुम्हारे जन्म दिन पर मैं तुम्हे दूँ भी तो क्या क्या दूँ।।

मुझे मालूम है तेरे लिए मैंने किया क्या है,
तुझे तुझ से चुराया है तो बदले में दिया क्या है,
तुमने ज़िंदगी की हर घड़ी मुझ पे निछावर की,
जितना भी जिया मुझको जिया खुद को जिया क्या है।

मेरा जो बस चले तो फ़ूल शबनम और हवा दे दूँ,
चाँद की चांदनी दे दूँ, मचलती ये घटा दे दूँ,
ले आऊं तेरी खातिर ढूंढ के मोती समंदर से,
मुझे मालूम हो तो सारी खुशियों का पता दे दूँ।

मेरा जो बस चले तो ओस की बूंदें उठा लाऊं,
तुम्हारे वास्ते उड़ती हुई कोई घटा लाऊं,
चहकती इक हँसी को टांक दूँ मैं तेरे चेहरे पे,
क्षितिज पर डूबते सूरज से कुछ लाली चुरा लाऊं।

हमेशा यूँ ही हँसने खिलखिलाने कि दुआ दे दूँ,
हवा के साथ बस उड़ने उड़ाने कि दुआ दे दूँ,
जो तुमने सोच रखी थी मगर मांगी नहीं होगी,
तुम्हे तक़दीर से उस शै को पाने कि दुआ दे दूँ।

तुम्हारे जन्म दिन पर मैं तुम्हे दूँ भी तो क्या क्या दूँ।। 

Tuesday, December 10, 2013

लघु कथा - तब और अब


तब - पिताजी कुढ़ते थे, क्या करेगा हमारे लिए, इस से क्या उम्मीद करें। रोयेगा ज़िंदगी भर, कुत्तों के मूड़ मारेगा, कुछ नहीं कर सकता। हमारी नाक कटवाएगा। 

अब - बेटा चिढ़ता है,  किया ही क्या है आपने, क्या दिया है हमें, ना ब्रांडेड कपडे, ना गाड़ी ना स्मार्ट फ़ोन। दुनिया के बच्चों के पास सारी सुविधाएँ हैं हमारे पास क्या है।

मैं तब भी चुप था - मैं अब भी चुप हूँ।