Tuesday, April 19, 2016

डिग्रियां क्या मिली पाँव जलने लगे

आप हमसे ज़रा खुल के मिलने लगे।
ऐसा ना हो कि ये दिल मचलने लगे।

मेरी बाँहों के घेरे में झुक जाओ तुम,
साथ में ये दुप्पटा भी गिरने लगे।

घूमता था ये बचपन भरी धूप में।
डिग्रियां क्या मिली पाँव जलने लगे।

आज भी साथ मेरे चलोगे ना फिर,
साथ में जब मेरे चाँद चलने लगे।

कुछ दिनों से सियासी चलन देखकर।
फैसले मुंसिफों के बदलने लगे।

Saturday, April 16, 2016

एक चतुष्पदी

ये दुआ है कि हमें भूल के ना भूलो तुम,
ऐसे हालात कहाँ लग के गले झूलो तुम,
अब तो पल भर को तेरा साथ भी ग़नीमत है,
ये ही क्या कम है भूल से ही हमें छू लो तुम।