सुहानी शाम के मंज़र में जब ये दिल धड़कता है,
मेरे अन्दर कोई शायर कई किश्तों में मरता है।
कोई आएगा शायद आज दरवाजा खुला रखूं,
पुराने नीम की डाली पे इक पंछी चहकता है।
ये सारे शेर सारी शायरी बेकार लगती है,
किसी बच्चे की आंखों से अगर आंसू छलकता है।
करूँ फिर कोई जिद रुठुं मैं रोऊँ और चिल्लाऊं,
बच्चों की जिदों से ही तो माँ का मन बहलता है।
तू ही तुलसी मेरे घर की, है तू ही रात की रानी,
तेरे आँचल की खुशबू से मेरा आँगन महकता है।
कई दिन बाद मिल कर भी उनींदे से ही लगते हो,
कहाँ अब मुझसे मिलने को तुम्हारा दिल मचलता है।
मेरे अन्दर कोई शायर कई किश्तों में मरता है।
कोई आएगा शायद आज दरवाजा खुला रखूं,
पुराने नीम की डाली पे इक पंछी चहकता है।
ये सारे शेर सारी शायरी बेकार लगती है,
किसी बच्चे की आंखों से अगर आंसू छलकता है।
करूँ फिर कोई जिद रुठुं मैं रोऊँ और चिल्लाऊं,
बच्चों की जिदों से ही तो माँ का मन बहलता है।
तू ही तुलसी मेरे घर की, है तू ही रात की रानी,
तेरे आँचल की खुशबू से मेरा आँगन महकता है।
कई दिन बाद मिल कर भी उनींदे से ही लगते हो,
कहाँ अब मुझसे मिलने को तुम्हारा दिल मचलता है।