Saturday, June 27, 2009

कई किश्तों में मरता है.

सुहानी शाम के मंज़र में जब ये दिल धड़कता है,
मेरे अन्दर कोई शायर कई किश्तों में मरता है।

कोई आएगा शायद आज दरवाजा खुला रखूं,
पुराने नीम की डाली पे इक पंछी चहकता है।

ये सारे शेर सारी शायरी बेकार लगती है,
किसी बच्चे की आंखों से अगर आंसू छलकता है।

करूँ फिर कोई जिद रुठुं मैं रोऊँ और चिल्लाऊं,
बच्चों की जिदों से ही तो माँ का मन बहलता है।

तू ही तुलसी मेरे घर की, है तू ही रात की रानी,
तेरे आँचल की खुशबू से मेरा आँगन महकता है।

कई दिन बाद मिल कर भी उनींदे से ही लगते हो,
कहाँ अब मुझसे मिलने को तुम्हारा दिल मचलता है।

इश्तहार हूँ....

ग़म मुझसे बाँट लो तुम्हारा ग़म गुसार हूँ,
जो उम्र भर ना चुक सके ऐसा उधार हूँ।
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तुम देख भी लो मुझको मगर भूल भी जाओ,
सड़क पे लगा हुआ कोई इश्तहार हूँ।
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नशा अगर करो तो मेरे प्यार प्यार का करो,
तुम ख़ुद को भूल जाओगे ऐसा खुमार हूँ।
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अपनी ही उम्र खर्च कर रहा हूँ मुसलसल,
अपने ही दुश्मनों में आज मैं शुमार हूँ।

Sunday, June 14, 2009

सुहागरात..




नए सिरे से जिंदगी की शुरुवात करें,आज की रात को फिर से सुहाग रात करें।
हटाओ तुम भी ये चिलमन कि चाँद दिखने दो,

हमारा साथ निभाओ कि जवां रात करें।
बढ़ाओ हाथ ज़रा रौशनी को को गुल कर दो,हमारे होंठ तुम्हारे लबों से बात करें
अपने होठों के प्याले से यूँ पिलादो हमें,कोई जवाब दे सकें ना सवालात करें.

Saturday, June 13, 2009

हाशिया नहीं मिलता.

प्यार का इन दिनों कोई वाकया नहीं मिलता,
शेर कहने के लिए काफिया नहीं मिलता।


जिंदगी भर चुकी है नफरतों के रंगों से,
किसी सफे पे कोई हाशिया नहीं मिलता।


जो सिर्फ़ प्यार-ओ-मोहब्बत की इल्तिजा लाये,
आजकल शहर मैं वो डाकिया नहीं मिलता।



इश्क इक लाईलाज मर्ज़ हुआ करता है,
इसका कोई इलाज़ शर्तिया नहीं मिलता।


शेखजी बन गए सब पीने वाले क्या करते,
कभी मैखाना कभी साकिया नहीं मिलता।

Wednesday, June 10, 2009

ग़ज़ल

इन दिनों मुझे जीवन किसी सज़ा सा लगता है,
तेरे बगैर ये बिस्तर बड़ा बड़ा सा लगता है।

एक मदहोशी सी रहती है तेरी कुर्बत में,
तेरे बदन की महक में कोई नशा सा लगता है।

ये तेरी बोलती आँखें ये लरज़ते हुए लब,
तेरा चेहरा मुझे ज़न्नत की अप्सरा सा लगता है।

मैं तेरी याद में रोया नहीं कभी फ़िर भी,
सुबह के वक्त जाने क्यूँ गला भरा सा लगता है।

पन्ने उलटता रहता हूँ यूँ ही किताब के,
जिंदगी का हर सफा पढ़ा सुना सा लगता है।

मसाइल और भी हैं प्यार के सिवाय मगर,
सावन के इस अंधे को सब हरा सा लगता है।

अपनी हर साँस पे अब तेरा नाम लिख दिया मैंने,
मगर तुझे ना जाने क्यूँ ये सब ज़रा सा लगता है।

एक ग़ज़ल

बेताब परिंदों की चहक देख रहा हूँ,
आसमां छूने की कसक देख रहा हूँ।


कहने को अभी तक हैं मेरे पाँव ज़मीं पे,
लेकिन उठा के सर को फलक देख रहा हूँ।


दीवानगी या इश्क का असर कहो इसे,
रंग सूंघता हूँ महक देख रहा हूँ।


वो बुत समझ रहे हैं मुझे उनको क्या पता,
आगाज़ से अंजाम तलक देख रहा हूँ।


कौनसी मंजिल है मेरी रास्ता है क्या,
चौराहे पे खडा हूँ सड़क देख रहा हूँ।

Monday, June 8, 2009

कुछ यूँ ही से खयालात...!!!

कनारा आँख का कुछ नम तो हुआ ही होगा,
वो कहे या न कहे गम तो हुआ ही होगा.
अपनी औलाद की मासूम सी ख्वाहिश के लिए,
गरीब बाप का सर ख़म तो हुआ ही होगा.
ज़र्द सूखे हुए पत्तों से भर गयी है सड़क,
बोझ पेडों का भी कुछ कम तो हुआ ही होगा
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उनकी जफा पे बददुआ तो हम भी रखते हैं,
कह नहीं पाते जबां तो हम भी रखते हैं.
आप कीजिये सितम हम मुस्कुराते जायेंगे,
ये निराली सी अदा तो हम भी रखते हैं.
देखना सैलाब हम को छू ना पायेगा,
साथ में माँ की दुआ तो हम भी रखते हैं

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हसीं मंज़र नज़र आता है इन पुरवाइयों के बीच,
जवां है रात हम दोनों हैं इन तनहाइयों के बीच,
मैं सोना चाहता हूँ रख के सर को तेरे सीने पे,
किसी मंदिर के गुम्बद सी तेरी ऊँचाइयों के बीच

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पढ़ के किताबें हम ने कभी कुछ नहीं सीखा,
मोहब्बत ने सिखाया हमें जीने का सलीका.
ऐ चाँद तुझे चौदवहें कि रात देख कर,
कहने लगा हूँ मैं भी उसे चाँद जमीं का।

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ये गुलिस्तान मेरी पहुँच से बहुत दूर नहीं है,
ख़ुद मुझे ही फूल चुनने का शऊर नहीं है।
मेरे हालात किसी को समझ आयें भी तो कैसे,
मेरी तरह कोई भी तो मजबूर नहीं है।
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एक इल्तिजा....

साथ में रहो ना मेरे बिन रहा करो,
छोड़ कर मुझे न बहुत दिन रहा करो।


मुझको तुम्हारी याद सताएगी रात दिन,
तुम दूर ना मुझसे कोई पलछिन रहा करो।

करने दो अपने साथ जो दुनिया करे जफा,
तुम मेरी वफ़ा पे तो मुत्मुइन रहा करो।

मैं तुम को एक घर ना दे सका अभी तलक,

मेरे हसीन दिल की मालकिन रहा करो।