Monday, June 13, 2016

ये ज़माने का चलन भी तो नहीं।

ये ज़माने का चलन भी तो नहीं।
सर कटाने का चलन भी तो नहीं।।

अब तो हमने भी यकीं कर ही लिया।
आज़माने का चलन भी तो नहीं।

मौका पाते ही गिरा देंगे तुम्हें।
औ उठाने का चलन भी तो नहीं।।

रूठ जाने से भला क्या होगा।
फिर मनाने का चलन भी तो नहीं।।

याद करने की भला क्या कहिये।
याद आने का चलन भी तो नहीं।।

दूर जा कर भी उन से क्या होगा।
पास आने का चलन भी तो नहीं।।

रास्ता भूल के आया हूँ इधर।
इस बहाने का चलन भी तो नहीं।

सो ही जायेंगे खुद ब खुद हम भी।
यूँ सुलाने का चलन भी तो नहीं।।