Wednesday, November 26, 2014
Thursday, October 2, 2014
एक पत्थर से देवता हुआ था
एक लम्बे अरसे से ख़ामोशी ज़ारी थी। कल अचानक वो शायर मुझमे लौट आया। एक ग़ज़ल की सौगात लेकर। पता नहीं किसी क़ाबिल है भी या नहीं … आप बताइयेगा !!
न जाने रात मुझको क्या हुआ था।
एक पत्थर से मैं लिपटा हुआ था।।
बहुत पूजा, मनाया तब कहीं वो।
एक पत्थर से देवता हुआ था।।
शब-ए-विसाल में गाहे-बगाहे।
मुहब्बत का भी कुछ चर्चा हुआ था।।
वो मेरे सामने बँटता गया और।
मैं ये समझा कि वो मेरा हुआ था।।
नींद तेरी, ख़्वाब तेरे, मेरा क्या ?
मैं सारी रात क्यों जागा हुआ था ?
न जाने रात मुझको क्या हुआ था।
एक पत्थर से मैं लिपटा हुआ था।।
बहुत पूजा, मनाया तब कहीं वो।
एक पत्थर से देवता हुआ था।।
शब-ए-विसाल में गाहे-बगाहे।
मुहब्बत का भी कुछ चर्चा हुआ था।।
वो मेरे सामने बँटता गया और।
मैं ये समझा कि वो मेरा हुआ था।।
नींद तेरी, ख़्वाब तेरे, मेरा क्या ?
मैं सारी रात क्यों जागा हुआ था ?
Sunday, June 29, 2014
एक अरसे के बाद कुछ पंक्तियाँ ज़हन में आईं हैं !
माना बहुत कठिन है ऐसे दौर में मनवाना सच को,
झूठ बना देता है हद से ज़्यादा दोहराना सच को।
अरे सियासतदानों कुछ तो सोचो अब तो बंद करो,
झूठ के सुन्दर चमकीले फ्रेमों में मढ़वाना सच को।
Saturday, May 10, 2014
एक ग़ज़ल - एक लम्बे अरसे बाद एक प्रयास है। शायद पसंद आये।
मायने सब बदलते जा रहे हैं,
मेरे अशआर धोका खा रहे हैं।
पेट की दौड़ में भगता हूँ दिन भर,
ख्याल बैठ कर सुस्ता रहे हैं।
आईने सब उतार कर रख दो,
हम अपने आप से उकता रहे हैं।
साथ रहने से जो उलझे पड़े हैं,
उन्हीं धागों को हम सुलझा रहे हैं।
चढ़ाई उम्र की पूरी हुई है,
ढलानों पर फिसलते जा रहे हैं।
हमें अम्मी ने बहलाया था जिनसे,
उन्हीं बातों से हम बहला रहे हैं।
सुबह गुज़रा मेरे नज़दीक़ से वो,
अभी तक भी पसीने आ रहे हैं।
मेरे अशआर धोका खा रहे हैं।
पेट की दौड़ में भगता हूँ दिन भर,
ख्याल बैठ कर सुस्ता रहे हैं।
आईने सब उतार कर रख दो,
हम अपने आप से उकता रहे हैं।
साथ रहने से जो उलझे पड़े हैं,
उन्हीं धागों को हम सुलझा रहे हैं।
चढ़ाई उम्र की पूरी हुई है,
ढलानों पर फिसलते जा रहे हैं।
हमें अम्मी ने बहलाया था जिनसे,
उन्हीं बातों से हम बहला रहे हैं।
सुबह गुज़रा मेरे नज़दीक़ से वो,
अभी तक भी पसीने आ रहे हैं।
Monday, January 20, 2014
कितना पानी है समंदर में अभी
हादसा ये भी कर के देख लिया,
हमने थोडा सा मर के देख लिया.
सिमट के खुद में कहाँ तक जीते,
रोज़ थोड़ा बिखर के देख लिया.
दिल की परवाज़ अब भी जारी है,
पंख हमने क़तर के देख लिया.
कितना पानी है समंदर में अभी,
लो हथेली में भर के देख लिया.
उसकी यादें ही दफ्न थीं दिल में,
हमने गहरे उतर के देख लिया.
क्यूँ ज़माने से खौफ खाते हो,
मत डरो, हमने डर के देख लिया.
हमने थोडा सा मर के देख लिया.
सिमट के खुद में कहाँ तक जीते,
रोज़ थोड़ा बिखर के देख लिया.
दिल की परवाज़ अब भी जारी है,
पंख हमने क़तर के देख लिया.
कितना पानी है समंदर में अभी,
लो हथेली में भर के देख लिया.
उसकी यादें ही दफ्न थीं दिल में,
हमने गहरे उतर के देख लिया.
क्यूँ ज़माने से खौफ खाते हो,
मत डरो, हमने डर के देख लिया.
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