Sunday, July 7, 2013

एक लघु कथा - बैसाखी


वो हमेशा की तरह अपने ख्यालों में डूबी हुई दोनों बैसाखियों के सहारे धीरे धीरे सड़क पर निकली। उसकी चाल से कहीं तेज़ चलते हैं उसके ख़याल। न जाने क्या क्या सोच लेती है वो एक बार बैसाखी बढाने से पहले ही।


सामने मोटर साइकिल पर आ रहे लड़के पर ध्यान गया उसका। वो लड़का दूर से ही उसकी तरफ देख रहा था। जैसे जैसे दोनों नज़दीक आये लड़के ने उसकी तरफ ध्यान से देखा। उसने अपनी निगाह हटा ली और सड़क पर दूर कहीं देखने लगी।

"मैं अपाहिज हूँ ना इसीलिए इतने ध्यान से देख रहा था वो लड़का।" एक गहरी सांस लेते हुए उसने सोचा और सड़क के गड्ढों से बचते हुए आगे बढ़ने लगी।

सामने से एक और मोटर साइकिल आ रही थी। एक नौजवान बड़ी मस्ती में गुनगुनाता हुआ आ रहा था उस पर. वो करीब आया और अपनी धुन में गाता हुआ आगे निकल गया.

"मैं अपाहिज हूँ ना इसीलिए ध्यान नहीं दिया उस लड़के ने मुझ पर। " एक गहरी सांस लेते हुए उसने सोचा और फिर सड़क के गड्ढों से बचने के प्रयत्न में लग गयी।

Thursday, July 4, 2013

कभी तो लॉटरी बन कर हमारे नाम आ जाओ।


मिले फुरसत जो दुनिया से हमारे काम आ जाओ,
कभी तो लॉटरी बन कर हमारे नाम आ जाओ।

न तो दूरी दिलों में है न जज्बों पर कोई पहरा,
यहाँ कैसा तक्कलुफ़ है बिना पैग़ाम आ जाओ।

चलो अब इस मुहब्बत में जो होना है सो हो जाये,
लगे सर पे कोई तोहमत कोई इलज़ाम आ जाओ।

हम सफ़र मेरी रातों के मेरे मह्ताब हो तुम ही,
गया सूरज भी मगरिब में हुई है शाम आ जाओ।

निकालो दिन कोई ऐसा कि फुरसत के हों पल दो पल,
चलो फिर साथ बैठेंगे बनाओ जाम  आ जाओ।