Wednesday, April 27, 2011

अब क्या मतलब है रूठ जाने का


अब क्या मतलब है रूठ जाने का,
वक़्त मिलता नहीं मनाने का.

ए हवा सुन मेरा इरादा है,
चाँद को रात भर जगाने का.

ये जो बोसा है, इक तरीका है,
कई शिकवे गिले छिपाने का.

मेरे माथे पे जो पसीना है,
है नतीजा करीब आने का.

रश्क होता है तेरी चीज़ों से,
हाय आइना गुसलखाने का.

पहले कहते तो आजमाते तुम्हे,
अब कहाँ दम है आजमाने का.

मेरे शानो पे चढ़ के बैठ गया,
ये है अंदाज़ कद बढाने का.

आज मौसम भी है और मौका भी,
थोड़ी पीने का गुनगुनाने का.

Friday, April 22, 2011

पके ना आम तो कच्ची खटाई होती है

बस उनके पास ही दिल की दवाई होती है,
कि जिनके पाँव में फटी बिवाई होती है.

मेहमान उन घरों में पूजे जाते हैं,
जिन घरों में टूटी चारपाई होती है.

उम्र के साथ ही आती है तजरबे कि मिठास
पके ना आम तो कच्ची खटाई होती है.

ज़हन में जागते रहते हो तुम भी साथ मेरे,
शबे विसाल से बेहतर जुदाई होती है.

बस इसलिए ही तो नामे वफ़ा से डरते हैं,
वफ़ा कि आड़ में ही बे-वफाई होती है.

बड़े जतन से सजाता है बाप मंडप को,
बस एक रात में बिटिया पराई होती है.

Friday, April 1, 2011

हो गया ख़ाक इक शरारे में


हो गया ख़ाक इक शरारे में,
कुछ ना बाकी रहा बेचारे में.

देखो हालात क्या कराते हैं,
खुद शिकारी बंधा है चारे में.

हार खुद हम ही मान बैठे थे,
फर्क तो कम ही था किनारे में.

बात ऐसी है इसलिए चुप हूँ,
बात समझा करो इशारे में.

जो भी होगा वो देखा जायेगा,
अब तो कश्ती है अपनी धारे में.

जब कभी भी मैं सांस लेता हूँ,
सोचता हूँ तुम्हारे बारे में.