Monday, November 16, 2009

चाँद की सिलवटें नज़र आईं....



जब कहीं खल्वतें नज़र आईं,
इश्क की हरक़तें नज़र आईं,

आज फिर उनको प्यार करने चले,
आज फिर कुछ हदें नज़र आईं,

तेरे चेहरे को जो छू कर देखा,
चाँद की सिलवटें नज़र आईं.

सर पे माँ बाप का साया है अभी,
इसलिए बरकतें नज़र आईं.

जिंदगी चुक गयी कुछ भी ना बचा,
तब कहीं फुरसतें नज़र आईं.

चोरी से प्यार हम भी करें..



सोचते यूँ हैं की दो चार बार हम भी करें,
कोई मिल जाए तो चोरी से प्यार हम भी करें.

जिंदगी यूँ ही गुज़र जायेगी डरते डरते,
गुनाह कोई तो इक बार यार हम भी करें.

उचक के चूम लो तुम भी हमारे होठों को,
और अपनी बाहों को गले का हार हम भी करें.

सबूत बेवफाई के ही नज़र आते हैं,
दिल तो कहता है उसपे ऐतबार हम भी करें.
...........
किसी गरीब की झोली में डाल दें बटुआ,
खिजां के मौसमों में इक बहार हम भी करें

Wednesday, November 4, 2009

तेरे बदन की ये खुशबु..



बस इस बहाने से मिलने मिलाने आती है,
वो सूखा तौलिया छत पे सुखाने आती है.

मैं उस हवा का इंतज़ार किया करता हूँ,
जो तेरी खिड़की का पर्दा हटाने आती है.

चाँद कहता है ग़ज़ल तेरे हुस्न पे हर शब्,
चाँदनी गीत तेरे गुनगुनाने आती है.

तेरे बदन की हरारत ही सुलाती है मुझे,
तेरे बदन की ये खुशबु जगाने आती है.

चिराग हो गए गुल घर के खुद-ब-खुद सारे,
तू जुगनुओं की तरह जगमगाने आती है.