Wednesday, July 22, 2009

मुझे आराम चाहिए..

सुकून भरे पल का इंतजाम चाहिए,
बहुत थका हुआ हूँ मुझे आराम चाहिए.

कल तक तो जो भी खबर मिली हादसों की थी,
आज कोई खुश दिल पैगाम चाहिए.

हटा लो बोतल हमारे सामने से अब,
बोतल से बहुत पी चुके अब जाम चाहिए.

दीवानी इस कदर वो मेरे प्यार में हुई,
फिर से किसी मीरा को श्याम चाहिए.

कब तक सफ़र करूँगा जिंदगी में मुसलसल,
अब कोई मंजिल कोई मुकाम चाहिए.

दोस्त बेशक हौसला अफजाई करेंगे,
दुश्मनों का भी तो अहतराम चाहिए.

इन हुस्न वालों के दिमाग आसमां पे हैं ,
इन को कोई हमदम नहीं गुलाम चाहिए.

Thursday, July 16, 2009

मेरी पहली ख़ुशी, मेरी पहली लगन.


मेरी पहली ख़ुशी, मेरी पहली लगन.
मैं तो जीता रहा तुझमें हो के मगन.

तेरे चेहरे से मुझको मिले ताजगी,
तेरा श्रृंगार भी है तेरी सादगी,
तुझको देखूं तो मुझको मिले जिंदगी,
तू ही पूजा मेरी तू ही है बंदगी,

मेरे त्यौहार का तू ही पहला शगन
मैं तो जीता रहा तुझ में हो के मगन....


प्रेमिका तू मेरी तू ही अर्धांगिनी,
तू ही साथी मेरा तू ही है संगिनी,
तू ही पूनम के चंदा की है चांदनी,
इतनी पावन के गंगा के जल से बनी,

अंजुरी भर के तेरा करूँ आचमन,
मैं तो जीता रहा तुझमें हो के मगन....


हाँ तुझे जब बनाया था भगवान् ने,
अप्सरा वाली मिटटी ली निर्माण में,
था खुदा ने गढा तुझको रमजान में,
होंठ पे तिल दिया तुझको मुस्कान में,

यूँ हुआ इस धरा पे तेरा अवतरण,
मैं तो जीता रहा तुझमे हो के मगन....

मेरा बेटा...

तेरी मोटर
तो खराब भी पड़ सकती है,
मेरा घोड़ा
तो तीन टांग से भी भागता है,

क्या करोगे
जब बिजली चली जायेगी ?
ये कंप्यूटर तो बंद ही हो जायेगा,

मैं तो अँधेरे में भी
अपना खेल खेल सकता हूँ,
मेरे पास तो पुरानी सांप सीढ़ी है,

क्या कहा...?
तेरे पापा को कार लिए हो गए बरसों,
तो क्या हुआ...
मेरे पापा भी ले आयेंगे शायद....परसों.........

अपने सोये हुए
अरमानों को जिंदा नहीं होने देता,
मेरे बेटा मुझे शर्मिन्दा नहीं होने देता.

एक और ग़ज़ल..

ये गुलिस्तान मेरी पहुँच से बहुत दूर नहीं है,
हाँ मुझे ही फूल चुनने का शऊर नहीं है.

कहीं दौलत का नशा है कहीं जवानी का,
अब ऐसा कौन है जिसपे कोई सुरूर नहीं है,

वो और लोग थे जो वतन पे इतराते थे,
अब तो बच्चों को अपने बाप पे गुरूर नहीं है.

मीठी नींद भी उसे फ़क़त सपनों में आती है,
जो हर शाम को मेहनत से थक के चूर नहीं है.

मेरे हालत किसी को मैं समझाऊं भी कैसे,
मेरी तरह कोई भी तो मजबूर नहीं है.

वो परबत की तरह है उसे झुकना नहीं आता,
तन के ज़रूर खडा है मगरूर नहीं है,

लो आ गयी कश्ती भी तूफां से निकल कर,
हौसला रखो कि मंजिल दूर नहीं है.

इन्सान तो नहीं था वो ?

किसी मासूम की पहचान तो नहीं था वो ?
टूटे दिल का कोई अरमान तो नहीं था वो ?

तुम जला आये उसे, फूंक दिया मुंह ढक के,
देख लेते, कोई इन्सान तो नहीं था वो ?

आइना तोड़ दिया तूने डर के पत्थर से,
तेरा ही अक्स था हैवान तो नहीं था वो.

मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसा बादल,
वजह रही होगी, बेईमान तो नहीं था वो.

कल एक ख़त लिए फिरता था अदू गलियों में,
मेरे ही कत्ल का फरमान तो नहीं था वो ?