Friday, May 24, 2013

बिन मुहब्बत मगर निबाह नहीं.....

इश्क की यूँ तो कोई चाह नहीं,
बिन मुहब्बत मगर निबाह नहीं।

फूल को तोड़ना बुरा है मगर,
फूल को देखना गुनाह नहीं।

चाँद भी छुप गया घटाओं में,
और तू भी हद-ए-निगाह नहीं।

हर इक उम्मीद ने दम तोड़ दिया,
अब शहर में कोई अफ़वाह नहीं।

या सीयासत ही गूँगी बहरी है,
या हमारी कोई परवाह नहीं।

वो लतीफों पे दाद लेते हैं,
मेरी ग़ज़ल पे वाह वाह नहीं।