Thursday, December 9, 2010

शायद...

आज होगा तेरा करम शायद,
ये हमारा ही था वहम शायद.

खुद को चूंटी चुभा के देखेंगे,
अब जो हो प्यार का भरम शायद.

आज फिर प्यार करना भूल गए,
आज फिर से था वक़्त कम शायद.

उसको छूने में भी डर लगता है,
गाफिल-ऐ-नींद हो सनम शायद.

और कुछ तो बदल ना पाएंगे,
अपनी आदत बदल लें हम शायद.

राह में तुमने हमें छोड़ दिया,
और चल लेते कुछ कदम शायद.

जुर्म ये हम भी करके देखेंगे,
फिर जो लेंगे कोई जनम शायद

Tuesday, November 9, 2010

चलो बारिश में गुसल करते हैं....

आज फिर एक पहल करते हैं,
उसके चेहरे को ग़ज़ल करते हैं.

दिल के रिश्तों को दिल में रहने दो,
ये दमागों में खलल करते हैं.

छोड़ दो सब, मेरा कहना मानो,
बस मुहब्बत पे अमल करते हैं.

दिल ये बच्चा है, इसे खुश कर दें,
चलो बारिश में गुसल करते हैं.

हमने पाया उसे या उसने हमें,
इस पहेली को भी हल करते हैं.

तुम को महलों में नींद आएगी,
हम तो कुटिया को महल करते हैं.

जम के अश्कों की ये बरसात हुई,
चलो खुशियों की फसल करते हैं.

Thursday, October 28, 2010

बंद मुट्ठी में ये ताकत कैसी...


इतना चुप रहने की आदत कैसी,
ये तब्बसुम से अदावत कैसी.

ये तो दुनिया है कहेगी कुछ भी,
इसमें इतनी बड़ी आफत कैसी.

जो पिघल जाए इक चिंगारी में,
कैसा वो प्यार,....मुहब्बत कैसी.

मेरी पेशानी को छू कर देखो,
प्यार से पूछो, तबीयत कैसी.

कोई ऊँगली न उठ सकी देखो,
बंद मुट्ठी में ये ताकत कैसी.

फैसला घर से लिख के लाता है,
कैसा मुंसिफ है, अदालत कैसी.

आइना तक भी तुमसे पूछता है,
हुई ये आपकी हालत कैसी.

तुम मेरे साथ रह के दूर रहो,
ये कैसा वस्ल, ये कुर्बत कैसी.

उम्र जिस मोड़ पे ला आई है,
अब कहाँ चैन अब फुर्सत कैसी.

Friday, October 1, 2010

दुनिया से थोड़ी देर को नज़रें चुरा के देख..


दुनिया से थोड़ी देर को नज़रें चुरा के देख,
हमको भी एक बार ज़रा मुस्कुरा के देख.

किसी का होके देख या अपना बना के देख,
रोते हुए की आँख से आंसू चुरा के देख.

चाँद समझ कर जिसे निहार रहा है,
चाँद की परछाई है पानी हिला के देख.

एहसास उसे छूने का कितना हसीन है,
उँगलियों से पीठ पे चींटी चला के देख.

स्वर्ग को अगर ज़मी पे देखना चाहे,
घर में कभी माँ-बाप के पाँव दबा के देख.

उम्र सारी खर्चनी पड़ेगी इसी में,
बस्ती जलाने वाले एक घर बना के देख.

खुशियाँ भी चल के आएँगी क़दमों में देखना,
आवाज़ दे के जोर से हमको बुला के देख.

सीने पे लाख ग़म लिए जीता है रात दिन,
सीने पे अपने यूँ कभी मुझको सुला के देख.

वीरान न हो जाए ये दुनिया तो बोलना,
तस्वीर इस दीवार से मेरी हटा के देख.

परवाज़ ख्यालों की तो फिर बेलगाम है,
बच्चों के साथ खेल में गैया उड़ा के देख.

Tuesday, August 3, 2010

गले में झूलता हुआ लाकिट ही उठा लूँ...


पंछियों को अपना ठिकाना तो चाहिए,
घर वापसी का कोई बहाना तो चाहिए.

माना हमारे जाने की परवाह नहीं है,
दरवाजे तलक आपको आना तो चाहिए.

आपका हर राज़ बेशकीमती ठहरा,
हमराह को हमराज़ बनाना तो चाहिए.

गले में झूलता हुआ लाकिट ही उठा लूँ,
लाकिट ही सही नाज़ उठाना तो चाहिए.

वफ़ा अगर ना हो तो ज़रा बेवफाई हो,
रिश्ता ये मोहब्बत का निभाना तो चाहिए.

आ जा कि उँगलियों से तेरी ज़ुल्फ़ सवारूँ,
दीवाना हूँ ये काम भी आना तो चाहिए.

दौलत से भरी होगी तिजोरी ये तुम्हारी,
तिल कोई मुट्ठी में समाना तो चाहिए.

बहर रदीफ़ काफियों का काम कुछ नहीं,
कहने को ग़ज़ल कोई फ़साना तो चाहिए.

अब कहाँ नीलकंठ होते हैं...


हसीन रात कर या चुप हो जा,
प्यार की बात कर या चुप हो जा.

गरज़ता है सुबह से शाम तलक,
या तो बरसात कर या चुप हो जा.

अब कहाँ नीलकंठ होते हैं,
खुद को सुकरात कर या चुप हो जा.

माना पत्थर है, मैं तो पूजूंगा,
आरती साथ कर या चुप हो जा.

बना है सारथी जो अर्जुन का,
शंख का नाद कर या चुप हो जा.

आग चूल्हे की ना बुझ पाए कभी,
ऐसे हालात कर या चुप हो जा.

हैं ग़ज़लकार कई सारे यहाँ,
खुद को उस्ताद कर या चुप हो जा.

अब जिंदगी में कोई अमावस की शब् नहीं...


बिना बताये चल दिए तो कुछ अजब नहीं,
कशिश तुम्हारे प्यार में पहले सी अब नहीं.

हैं और भी तो काम मुहब्बत से ज़रूरी,
इक मैं ही जिंदगी की ज़रूरी तलब नहीं.

ये वस्ल क्या ये प्यार की नजदीकियां कैसीं,
नज़र से नज़र तो मिली है लब से लब नहीं.

चाँद बनाया तुम्हें और सोचते रहे,
अब जिंदगी में कोई अमावस की शब नहीं.

चादर पे सिलवटों को बनाते मिटाते हैं,
रातें गुज़ारने का और कोई ढब नहीं.

इसी हिसाब में ये पूरा दिन निकल गया,
कब याद तुम करोगे हमें और कब नहीं.

Saturday, June 26, 2010

तुम्हारी खुशबु...

कहा था ना तुमसे,
बाँहों में भर लो मुझे,
बिना मिले ही चली गईं तुम,

तुम्हारे कहे मुताबिक़,
रोज़ दाना डालता हूँ कबूतरों को,

छत भर गई है सारी,
ज्वार और मक्का के दानों से,

आते तो हैं कबूतर
रोज़ छत पर,

छूते हैं दानों को,
मेरी तरफ देखते हैं,
और उड़ जाते हैं बिना खाए ही,

दानो में तुम्हारी खुशबु जो नहीं मिलती,

कहा था ना तुमसे
बाँहों में भर लो मुझे,
बिना मिले ही चलीं गईं तुम...

Tuesday, June 15, 2010

रोटियां....

गोल गोल चाँद के सामान रोटियां,
भूख और गरीब की पहचान रोटियां.

मिल गई अगर, तो जलन पेट की मिटे,
ना मिले तो मौत का पैगाम रोटियां.

आरती का थाल है गरीब के लिए,
भूखे को नमाज़ की अज़ान रोटियां.

महलों में महंगे नगीनों की हवस रही है,
झोंपड़ी का है फ़क़त अरमान रोटियां.

मर जाना चाहे भूख से खाना कभी नहीं,
अमीर के महल की बेईमान रोटियां.

नारे सियासी लोग लगाते बड़े बड़े,
गरीब के लिए है राष्ट्रगान रोटियां

एक मुक्तक...


जो बोलो तो ये सारी दौलत-ओ-असबाब बाँट दूँ,


ये नीदें नोच दूँ, आँखों के सारे ख्वाब बाँट दूँ,


बहुत खुदगर्ज़ हूँ मैं एक तेरे ही लिए जाना,


मिले जो तू मुझे ये सूरज-ओ-महताब बाँट दूँ.

भूल से प्यार कर लिया होगा..


यूँ ही बाँहों में भर लिया होगा,
भूल से प्यार कर लिया होगा.

चांदनी फ़ैल गई बिस्तर पे,
चाँद तकिये पे धर लिया होगा.

दाम सोने का कम हुआ है उधर,
तूने पीतल इधर लिया होगा.

बैठ कर दूर तुझसे सोचता हूँ,
आज पल्ला किधर लिया होगा.

ज़बान लड़खड़ा गई होगी,
हमारा नाम गर लिया होगा.

किताबे ज़ीस्त में कुछ भी न बचा,
हाशिया तक भी भर लिया होगा.

Monday, June 7, 2010

"लैला" समंदर में मिली...


बोलो खड़े रह पाओगे क्या जंग के मैदान में,
झाँक कर तो देख लो अपने भी गिरहेबान में.

घूमता रहता था अक्सर चाँद जिस दालान में,
अब नहीं खुलती कोई खिड़की भी उस मकान में.

हुस्नो ग़म इश्को वफ़ा के सारे मानी याद हैं,
नाम अपना भी लिखा दो इश्क के दीवान में.

रंग-औ-मज़हब की सियासी चाल ने उलझा दिया,
फर्क वर्ना कुछ नहीं इंसान और इंसान में.

उस बरस भेजा था तूने कच्चे आमों का अचार,
माँ तेरी खुशबु अभी तक भी है मर्तबान में.

कल तेरी झुमकी का हीरा देखकर ऐसा लगा,
चाँद ने पहना हो ज्यूँ ध्रुव तारा अपने कान में.

ये सुना था उसके घर में आये हैं मेहमान कुछ,
एक बेटी बिक गई रिश्तों भरी दुकान में.

कल सुनी थी ये खबर "लैला" समंदर में मिली,
कश्तियों के डूबने का डर है इस तूफ़ान में

Tuesday, June 1, 2010

एक ग़ज़ल..यूँ ही सी..


मेरी दुनिया है अलग सी, मैं अकेला सा हूँ,
आप क्या मुझ को संभालोगे झमेला सा हूँ.

लोग सब दूर ही रहते हैं मुझसे डरते हैं,
थोड़ा पागल हूँ मैं सनकी हूँ हठेला सा हूँ.

मेरी तासीर अलग है मेरी खुशबू भी अलग,
महक गुलाब की देता हूँ करेला सा हूँ.

बस एक बार देख लो मुझे अजमा भी लो,
इश्क की गर्द हूँ मैं प्यार का ढेला सा हूँ.

यूँ मुझे रोकना आसान नहीं है यारों,
नदी के बहते हुए पानी का रेला सा हूँ.

जो मेरे साथ रहोगे तो सुकूं पाओगे,
मैं तो बस गर्मियों की गोधुली बेला सा हूँ.

Wednesday, May 5, 2010

बेटियां...



पुरानी एक ये कहानी है,
चाँद पर कोई बुढ़िया नानी है.

नूर आँगन का घर की रौनक है,
बेटी तो चाँद आसमानी है.

मेरी झोली में चाँद आके गिरा,
ये सितारों की मेहरबानी है.

उसे साड़ी में देख कर यूँ लगा,
हुई बिटिया भी अब सयानी है.

आज जी भर के प्यार कर लूँ उसे,
बेटी है, घर पराये जानी है.

घर तो वो ही बनेगा घर, जिसमें,
एक बेटी की हुक्मरानी है.

कोई बेटी नहीं है जिस घर में,
दर-ओ-दीवार उसके फ़ानी है.

Monday, May 3, 2010

लगा के पंख उड़ गए ख़ुशी के पल सारे...



इन दिनों तेरी अदाओं पे ये पहरा क्यूँ है,
किसी मुरझाये हुए फूल सा चेहरा क्यूँ है.

बाल जूडे में बाँध रखे हैं तूने कब से,
फिर मेरे घर में इतना गहरा अँधेरा क्यूँ है.

चाँद से चेहरे को आँचल में छिपा रखा है,
आज पूनम है, तो ये चाँद अधूरा क्यूँ है.

लगा के पंख उड़ गए ख़ुशी के पल सारे,
ये ग़म का वक़्त वहीँ का वहीँ ठहरा क्यूँ है.

मेरे अदू को महज़ एक परेशानी है,
मेरी आँखों में कोई ख्वाब सुनहरा क्यूँ है.

Friday, April 16, 2010

रंग मेरा भी कोई कम तो नहीं....


चाँद भी देख के शरमाता है,
रंग गोरा सभी को भाता है,

रंग मेरा भी कोई कम तो नहीं,
ये तेरे तिल से मेल खाता है,

बना के आइना घर में रख ले,
इसमें तेरा भला क्या जाता है,

कहीं आशिक तो नहीं है तेरा,
ये चाँद रोज़ छत पे आता है,

छुपा ले तिल ये अपने होठों का,
ये मुझे रात भर सताता है,

दिल है, इसे संभाल कर रखना,
इसकी आदत है फिसल जाता है.

Tuesday, March 16, 2010

दुआ कर लें...


आओ इस सर को झुका कर कोई दुआ कर लें,
चलो कि हाथ उठा कर कोई दुआ कर लें.

वक़्त बचता ही नहीं आजकल दुआ के लिए,
ज़रा सा वक़्त चुरा कर कोई दुआ कर लें.

सफे दुश्मन में जिनका नाम लिख लिया था कभी,
अब उनको अपना बनाकर कोई दुआ कर लें.

रेत का घर बनायें साथ मिल के बच्चों के,
और उस घर को सजा कर कोई दुआ कर लें.

अपने हिस्से में चंद रोटियाँ जो आईं हैं,
किसी भूखे को खिलाकर कोई दुआ कर लें.

बोझ नौ महीने तक उठाया तुम्हारा जिसने,
पाँव उस माँ के दबा कर कोई दुआ कर लें.

उसकी बेरुखी को क्या कहूँ..


उसकी बेरुखी को क्या कहूँ, अदा कह दूँ ?
वो बेवफा भी नहीं है कि बेवफा कह दूँ.

बीच मंझधार में लाकर जो मुझे छोड़ गया,
कोई बताए उसे कैसे नाखुदा कह दूँ.

और मैं कर भी क्या सकता हूँ ये पता है उसे,
किसी ग़ज़ल को गुनगुनाऊं या कत-आ कह दूँ.

पहले अजमाओ उसे मुझ पे मत यकीन करो,
मेरा क्या, मैं तो किसी को भी फ़रिश्ता कह दूँ.

लो बीत गयी रात अब वो पूछते हैं,
बात जो रात को कहनी थी वो सुबह कह दूँ.

बस यही हुआ होगा...


और होता भी तो क्या बस यही हुआ होगा,
ख्वाब में तुमने मुझे हौले से छुआ होगा.

तेरी यादों की नमी अब भी सताती है हमें,
कहीं आँगन में तेरी याद का कुआं होगा.

अपने आँचल को ना हिलाओ मुसलसल इतना,
अब न भड़केंगे ये शोले, धुंआ धुंआ होगा.

तार बिजली के हिले थे सुबह कुछ याद आया,
मेहमान आये हैं छत पर कोई कौआ होगा.

नगद खरीद के लाते हैं..


मुहब्बत में कोई भी पेचो ख़म नहीं रखते,
फ़क़त इंसान हैं कोई धरम नहीं रखते.

मोहब्बत बांटते हैं औ बदी से डरते हैं,
हिसाब अपनी नेकियों का हम नहीं रखते.

बाद मरने के ही जन्नत नसीब होती है,
और जी लेते अगर ये भरम नहीं रखते.

नगद खरीद के लाते हैं जिंदगी सुबहा,
बस अब उधार की कोई कलम नहीं रखते.

कहीं रोने न लगे माँ भी देखकर हमको,
चाहे कुछ भी हो अपनी आँख नाम नहीं रखते

Tuesday, February 23, 2010

जाहिल नहीं मिला...


महफ़िल में कोई तेरे मुकाबिल नहीं मिला,
तुझ सा हसीन कोई भी कातिल नहीं मिला.

देखना, किसी किताब में पडा मिले,
जब से तुम को सौंप दिया दिल नहीं मिला.

पढ़ पढ़ के किताबों को इश्क सीखता रहा,
मुझ से ज़हीन कोई भी जाहिल नहीं मिला.

हम सारी रात पागलों से ढूँढते रहे,
गोरे बदन पे उसके कहीं तिल नहीं मिला.

इक मौज थी,आगोश में दरिया के बस गयी,
सब कुछ तो मिल गया उसे साहिल नहीं मिला.

काफिये इजाद करता हूँ..


बहुत शिद्दत से मैं जब भी तुम्हारी याद करता हूँ,
नयी ग़ज़ल के नए काफिये ईजाद करता हूँ.

कलम को दिल के छालों में डूबा कर गीत लिखता हूँ,
उन्हें लगता है वक़्त कीमती बर्बाद करता हूँ.

कहीं मैला ना हो जाये ये तेरा हुस्न नज़रों से,
तेरा दीदार हमेशा वजू के बाद करता हूँ.

ख़याल बन के मेरे ज़हन में जो बैठ गया है,
ग़ज़ल में ढाल कर चलो उसे आज़ाद करता हूँ.

मुझे रेशम बना दे गर खुदा, लिपटूं तेरे तन से,
उठा कर हाथ बार बार ये फ़रियाद करता हूँ.

आँखों की ज़बान बोलता रहा हूँ रात भर,
तुम भी तो कुछ कहो मैं इरशाद करता हूँ.

Saturday, February 6, 2010

दिल मवाली है..


दूज के चाँद पर भी लाली है,
है तेरा नूर या दिवाली है,

ज़ुल्फ़ अपनी ना खुली छोड़िये यूँ,
रात पहले ही बहुत काली है.

उसे जो दिल दिया गुमा देगी,
मेरी महबूब भोली भाली है,

हटो सीने में चुभ रहा है कुछ,
तुम्हारी कान वाली बाली है.

दिल से खेलोगे, चोट खाओगे,
फिर ना कहना कि दिल मवाली है.

अब तो महलों से तोड़ दो नाता,
घर हमारा भी खाली खाली है.